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रविवार, 25 जुलाई 2010

सृजनात्मक लेखन पर डॉ. गोपाल शर्मा - ८

आज सवेरे से ही छात्रों के फोन आ रहे थे - गुरु पूर्णिमा जो है. पर अपन ठहरे कलियुगी गुरु. देर से सोना , देर तक सोना. तीसरी कॉल से खीझ होनी शुरू हो गई थी. ''इन लोगों को रविवार को एक निशाचर की नींद में हस्तक्षेप का घोर पाप लगेगा''- स्नेहभरा शाप देकर सोने का प्रयास कर रहा था कि जोर की घंटी बजी. चश्मे के बिना देखा तो लगा कि स्क्रीन पर कोई नया नंबर है. सो, किसी छात्र का फ़ोन समझकर उसकी बात सुने बिना ही आँख मूँद कर आशीर्वाद बरसा दिया - प्रसन्न रहो . पर उस पार कोई छात्र नहीं था, दुनिया भर को खुले आम लिखना सिखाने का मधुर पाप करने वाले लीबियाप्रवासी गुरुघंटाल यानी प्रोफ़ेसर गोपाल शर्मा जी थे. जान कर अच्छा लगा कि २ अगस्त को वे महीने भर के लिए भारत आ रहे हैं छुट्टी मनाने. कुछ इधर उधर की बातें हुईं पर उन्हें यहाँ क्या लिखना? फिलहाल तो - आओ लिखना सीखें.......




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