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गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

वसंत पंचमी : निराला जयंती समारोह


निराला की कविता आज के मनुष्य की चेतना से जुड़ने में सक्षम है - डॉ.राधेश्याम शुक्ल. 

हैदराबाद, ०८ फरवरी २०११(प्रेस विज्ञप्ति)| 

"वसंत पंचमी सृजन का पर्व है. सकल शब्दमयी सरस्वती की प्रतिमा मनुष्य के भीतरी और बाहरी अस्तित्वों के तादात्म्य का प्रतीक है. उसका सम्बन्ध ऐसे अजर-अमर संसार से है जो काव्य का संसार है. वास्तव में मनुष्य एक साथ तीन समानांतर संसारों में जीता है. पहला संसार दार्शनिकों और वैज्ञानिकों का अर्थात ज्ञान का संसार है, तो दूसरा संसार आम जीवन का अर्थात कर्म का संसार है. जबकि तीसरा संसार भावनाओं और संवेदनाओं का, स्वप्नों और संभावनाओं का तथा आत्म और अध्यात्म का संसार है - यही है कवि का संसार. इसीलिए, कविता का यथार्थ जीवन के यथार्थ का आइना नहीं होता, बल्कि कवि के मानस का आइना होता है. कवि का मानस, जितना उज्ज्वल  होगा, उसका कवित्व उतना ही उदात्त होगा. वाल्मीकि, व्यास, कालिदास और निराला इसीलिए महाकाव्य की चेतना के कवि हैं कि वे इस तीसरे संसार में जीते हैं. इसी से निराला की कविता में, वह शक्ति आई है कि वह आज के मनुष्य की चेतना से जुड़ने में सक्षम है. निराला ने कभी आत्म-पीड़ा और आत्म-दया का भाव नहीं दिखाया, बल्कि सतत जीवन संघर्ष का उदहारण अपने व्यक्तित्व और कृतित्व द्वारा सामने रखा." 

ये उदगार 'स्वतंत्र वार्ता'  दैनिक के सम्पादक डॉ. राधे श्याम शुक्ल ने वसंत पंचमी के अवसर पर उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के साहित्य-संस्कृति मंच द्वारा आयोजित निराला जयंती समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रकट किए. समारोह की अध्यक्षता प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने की. वरिष्ठ गीतकार विनीता शर्मा और कवि  डॉ.देवेन्द्र शर्मा विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. इस अवसर पर विनीता शर्मा ने विशेष रूप से वसंत और निराला पर केन्द्रित अपने कई गीत प्रस्तुत किए. 
आरम्भ में सरस्वती-दीप-प्रज्वलन के उपरांत सभा के विशेष अधिकारी एस.के.हलेमनी की ओर से अतिथियों को अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया गया.  के.नागेश्वर राव ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. संध्या रानी, गायकवाड भगवान विश्वनाथ, जटावत श्रीनिवास राव और डॉ.जी.नीरजा ने निराला की कविताओं का वाचन किया. डॉ.पेरीशेट्टी श्रीनिवास राव ने 'अभी न होगा मेरा अंत' का तेलुगु अनुवाद प्रस्तुत किया. डॉ.गोरखनाथ तिवारी, डॉ.मृत्युंजय सिंह और मिसाले उत्तम लक्ष्मण ने क्रमशः महादेवी वर्मा, डॉ.  रामविलास शर्मा और अमृतलाल नागर के निराला सम्बन्धी संस्मरण पढ़ कर सुनाए . हेमंता बिष्ट ने जब निराला की प्रसिद्ध कहानी 'देवी' का वाचन किया तो सब भावाभिभूत हो गए. 

उच्च शिक्षा और शोध संस्थान में संपन्न निराला पर केन्द्रित शोधकार्यों की प्रदर्शनी भी इस अवसर पर आयोजित की गई. जिसमें, उनकी कविताओं, कहानियों, उपन्यासों और संस्मरणों के विविध  पहलुओं  पर तो अनुसन्धान किया ही गया है, साथ ही उनकी तुलना 'अमृतं कुरिसिन रात्रि' और 'कृष्णपक्षमु' जैसी तेलुगु रचनाओं के साथ भी की गई है. 

कार्यक्रम के अंतिम चरण में प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने निराला की क्लासिक कृति 'राम की शक्तिपूजा' का भावपूर्ण सस्वर वाचन किया. संचालन डॉ.बलविंदर कौर ने किया तथा कार्यक्रम संयोजिका डॉ.साहिरा बानू बी बोरगल ने धन्यवाद ज्ञापित किया.
प्रस्तुति - डॉ.जी. नीरजा 

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

राम की शक्ति पूजा गा लेने में ही वीरोन्माद आ जाता है, काश हम भी श्रोता होते।

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

@प्रवीण पाण्डेय

सच ही 'राम की शक्तिपूजा' को पढ़ने से भीतर एक दृढ़ता के जागरण का अहसास होता है. मैं नेट पर खोजता रहा कि शायद कहीं इसका कोई ऑडियो मिल जाए, तो अपने छात्रों के साथ एन्जॉय किया जाए. पर मिला नहीं, तो स्वयं मुझे ही वाचन करना पड़ा - कक्षा में तो करता ही रहा हूँ.

कबीर, तुलसी, प्रसाद और निराला मेरी कमजोरी हैं,बंधु.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

निराला जयंति एवं बसंत पंचमी की शुभकामनाएं। सुंदर चित्रावली और समाचार से लगा कि हम भी वहीं कहीं बैठे हैं :)