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बुधवार, 18 जनवरी 2012

गुलज़ार : गुफ़्तगू के दौरान

हैदराबाद लिटरेरी फेस्टिवल (16/17/18 जनवरी 2012) की पहली शाम 'सुकृता पुल कुमार की गुलज़ार से गुफ़्तगू' के कारण स्मरणीय बन गई. दिन भर की थकन जैसे हवा हो गई. सरहद और बुढिया वाली कविताएं यों तो पहले की सुनी-पढ़ी थीं पर आमने-सामने कवि के मुख से सुनने का मज़ा और ही था. चलते-चलते भी उन्होंने छात्रों की माँग पर किताब पर भी एक कविता सुनाई. लिपि ने कुछ चित्र भी लिए -


'गुफ़्तगू' के दौरान भी, और सवेरे उद्घाटन में भी, पवन के. वर्मा और गुलज़ार दोनों ने ही ज़ोर देकर कहा कि इस तरह के 'फेस्टिवल' का अंग्रेजीमे स्वरूप मानसिक औपनिवेशिकता का द्योतक है और कि ऐसे अवसरों पर भारतीय भाषा, भारतीय संस्कृति और भारतीयता को केंद्र में रखा जाना चाहिए.


हिंदी के अखबारों में तो इस बड़ी और महत्वपूर्ण घटना का कोई ज़िक्र आज दिखाई नहीं दिया. अलबत्ता अंग्रेजी प्रेस ने अवश्य  कवर किया. एक अखबार ने तो 'साहित्यकारों का क्रंदन' ही शीर्षक बना डाला.
      [चित्र : लिपि भारद्वाज]
द्रष्टव्य-  
Litterateurs lament ‘English Raj’
Need to preserve one's language, culture stressed

Poor turnout at festival

6 टिप्‍पणियां:

Kavita Vachaknavee ने कहा…

बधाई! अच्छा लगा।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गुलजार साहेब के मुख से उनकी ही कविता, एक अनुभव रहा होगा।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

आज के समाचार पत्र से पता चला कि भूटान में भारत के दूत पव्न के वर्मा जी ने इतनी कम संख्या को देखते हुए सम्बोधन करने से इंकार कर दिया। इससे इतने बडे कार्यक्रम की हमारे विद्वानों, विद्यार्थियों की उदासीन का पता चलता है।

लिपि द्वारा गुलज़ार जी के अच्छे चित्र खींचने के लिए बधाई। अब तो वो प्रोफ़ेशनल की श्रेणी में है॥

Luv ने कहा…

Poor turn out with Gulzar being there!! Ohh, may be because no Chetan Bhagat?

Vinita Sharma ने कहा…

आमने सामने बैटकर गुलजार साहब को सुनना जीवन का स्मरणीय पल खुली आँख का सपना

संपत देवी मुरारका ने कहा…

इस पल का मैंने भी लाभ उठाया था | बधाई