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बुधवार, 22 जनवरी 2014

हिंदी के विकास में भारतीय भाषाओं का योगदान



हिंदी अकादमी, हैदराबाद
अध्यक्ष : डॉ. ऋषभदेव शर्मा / अध्यक्षीय टिप्पणी के मुख्य बिंदु 

विषय : हिंदी के विकास में भारतीय भाषाओं का योगदान

@ हिंदी अकादमी – प्रो. बैजनाथ चतुर्वेदी और मधुसूदन चतुर्वेदी.

@ संकल्य – प्रो. वसंत चक्रवर्ती, संपादक के रूप में मेरा जुडाव. सम्प्रति- प्रो. मोहन सिंह, प्रो. शुभदा वांजपे. प्रकाशक- डॉ. गोरखनाथ तिवारी. विशेषांक – बच्चन, केदार/नागार्जुन, दलित विमर्श, जनजातीय विमर्श.

@ व्याख्यानमाला :  प्रो. एम. वेंकटेश्वर, मैं, प्रो.गंगाप्रसाद विमल. आज – डॉ. राम चंद्र राय.


1. बहुभाषिकता = सहज भारतीय भाषिक यथार्थ. चंदरबरदाई षड्भाषाप्रवीण. नारायण भट्ट संस्कृत, प्राकृत, पैशाची, आंध्र, कन्नड़. श्रीनाथ संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी.

2. आंध्र की देन : कुमारिल भट्ट, मल्लिनाथ, पंडितराज जगन्नाथ, नागार्जुन, नारायण तीर्थ (श्रीकृष्ण तरंगिणी), हाल. वल्लभाचार्य, गोरक्षनाथ(न.नागप्पा),

3. राधा<नप्पिन्ने.

4. भक्ति द्राविडी उपजी की तरह ही शृंगार भी द्रविड़मूलीय ( डॉ. एम. शेषन).

5. हिंदी आदि में द्रविड़ मूल के 450 से अधिक शब्द – अक्का, अत्ता, अटवी, अम्बा, कला, कुटि, कूल, मीन, नीर, नाना, पत्तन.

6. हिंदी कृदंत रूपों के अंत में समापक क्रिया जोड़ने की प्रवृत्ति < द्रविड़ प्रभाव : करना पडा, करना चाहिए.

7. (संस्कृत में गद्यकाव्य का वाक्यारम्भ क्रिया से.) हिंदी वाक्य निर्माण पर द्रविड़ प्रभाव : कर्ता - कर्म - क्रिया.

8. अनुवाद :  हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विकास का अन्योन्याश्रय संबंध.

9. तुलनात्मक साहित्य / भारतीय साहित्य

10. अंतर्विद्यावर्ती अध्ययन.

11. कई उत्तरआधुनिक विमर्शों का उदय इतर भारतीय भाषाओं के प्रभाव से हिंदी में.

12. हिंदीतर भाषी हिंदी साहित्यकारों की सुदीर्घ परंपरा :

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