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बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

अद्यतन तेलुगु कविता संग्रह ‘नया साल’ की भूमिका

नया साल (हिंदी में अनूदित तेलुगु कविताएँ)/
 संपादक : मामिडि हरिकृष्ण/
अनुवादक : गुड्ला परमेश्वर द्विवागीश/ 2017/  
250 रूपए  
भाषा सांस्कृतिक शाखा, तेलंगाना सरकार, कला भवन, रवींद्र भारती, हैदराबाद/
 

 ‘कोत्त सालू’ या ‘नया साल’ तेलंगाना के 59 कवियों की कविताओं का संकलन है. ये कविताएँ मूलतः तेलुगु में रचित हैं और अनुवादक जी.परमेश्वर ‘द्विवागीश’ ने इनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. यह कविता संकलन इस कारण ऐतिहासिक महत्व रखता है कि 2014 में तेलंगाना राज्य के निर्माण के बाद ‘मन्मथ’ नामक ‘उगादि’ (तेलुगु नववर्ष) के अवसर पर, नवगठित राज्य के प्रथम उगादि उत्सव के संदर्भ में तेलंगाना राज्य के तेलुगु कवियों ने एक मंच पर काव्यपाठ किया और जहाँ एक तरफ अपनी कविताओं के द्वारा उस लंबे संघर्ष को याद किया जिसके परिणामस्वरूप अंततः तेलंगाना की जनता को अपना न्यायसंगत राज्य-अधिकार प्राप्त हुआ, वहीँ दूसरी तरफ उन समस्त चुनौतियों को भी शब्दबद्ध किया जो इस नए राज्य के सम्मुख भविष्य की व्यवस्था के मार्ग में खड़ी हुई दिखाई दे रही हैं.
यहाँ यह भी स्मरण रखना आवश्यक होगा कि मनुष्य ने अपनी विकासयात्रा में जो भी कुछ प्राप्त किया है, उसमें भाषा और लिपि के आविष्कार का बड़ा महत्व है. इनके माध्यम से ही मनुष्य अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाता है और सही अर्थों में संवादधर्मी समाज की संभावनाओं को साकार कर पाता है. ‘नया साल’ शीर्षक यह आयोजन भी संवादधर्मी समाज के निर्माण की दिशा में युगों-युगों से चले आते मानवीय प्रयास की एक नई कड़ी है. इसमें संदेह नहीं कि तेलंगाना शासन ने इस प्रकार के आयोजन के माध्यम से जहाँ साहित्य और संस्कृति के प्रति अपनी पक्षधरता को व्यक्त किया है, वहीं अपनी लोकसंपदा और जनभाषा के प्रति आत्मीयता और गौरव को भी व्यक्त किया है. यहाँ संकलित सभी कवि किसी न किसी रूप में तेलंगाना की अस्मिता के लिए अपनी कविता को समर्पित करने वाले कवि हैं और यही वह बड़ा कारण है जो इस संकलन को भारतीय कविता के रूप में प्रतिष्ठित कराने के लिए काफी है.
तेलुगु साहित्य की लंबी परंपरा में तेलंगाना के साहित्य का अपना खास और अलग तेवर रहा है. इस खास और अलग तेवर को जनपक्षधरता एवं लोकसंपृक्ति के रूप में रेखांकित किया जा सकता है. तेलंगाना के आदिकवि पालकुरुकि सोमनाथ ने तेलुगु काव्य की क्लासिक परंपरा के समानांतर देशज परंपरा की नींव रखी थी. आगे चलकर जनभाषा के उन्नायकों ने इसे अलग पहचान दी. पोतना से लेकर कालोजी, दाशरथि और सिनारे तक के काव्य के अवलोकन से यह कहा जा सकता है कि वस्तु और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से तेलंगाना की तेलुगु कविता अपनी अलग पहचान रखती रही है. इस पहचान का आधार वास्तव में इस भूखंड की आम जनता के अस्तित्व के संघर्ष, स्वाभिमान की भावना और आंदोलन की प्रकृति से निर्मित दिखाई देता है. विशेष रूप से बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध और इक्कीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में यहाँ की जनता ने अलग तेलंगाना राज्य के लिए जो संघर्ष किया, उसे वाणी प्रदान करके यहाँ की तेलुगु कविता सही अर्थ में जन-कविता बन गई.
बलिदान के लंबे इतिहास के मार्ग पर चलकर तेलंगाना राज्य के निर्माण की परिस्थितियाँ उपस्थित हुईं, तो संघर्ष अपने आप में स्मरणीय गाथा बन गया. नवगठन से जुडी चुनौतियों और अपनी अस्मिता को रेखांकित कर पाने की सफलता के उत्साह ने अद्यतन कविता को अत्यंत विस्तीर्ण फलक प्रदान किया है. इस संकलन की कविताएँ विशेष रूप से ‘विश्व कविता दिवस’ के साथ जुड जाने के कारण और भी विशिष्ट बन गई हैं. इस समग्र काव्य-आयोजन को संभव बनाने में इसके अत्यंत  समर्थ संपादक मामिडि हरिकृष्णा के साथ परामर्श मंडल के सदस्यों के रचनात्मक सहयोग का बड़ा हाथ है जिनमें डॉ. नंदिनी सिद्धा रेड्डी, डॉ. मसन चेन्नप्पा, डॉ. अम्मंगि वेणुगोपाल, डॉ. नालेश्वरम शंकरम, जूपाका सुभद्रा और अयिनंपूडि श्रीलक्ष्मी जैसे समर्थ हस्ताक्षर सम्मिलित हैं.
‘नया साल’ की कविताएँ एक ओर तो आम आदमी की अदम्य जिजीविषा को व्यक्त करती हैं तथा दूसरी ओर तेलंगाना के जनजीवन की लोक-सांस्कृतिक विशेषताओं को उभारकर सामने लाती हैं. ये कविताएँ उस आशा, विश्वास और स्वर्णिम भविष्य को भी रूपायित करती हैं जिसके लिए इस नए राज्य का स्वप्न देखा गया था.
इस अत्यंत महत्वपूर्ण काव्य-आयोजन को हिंदी में लाने का काम करके अनुवादक गुड्ला परमेश्वर द्विवागीश ने वास्तव में सांस्कृतिक सेतु निर्माण के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का प्रमाण दिया है. वे तेलुगु और हिंदी दोनों भाषाओँ पर अच्छा अधिकार रखते हैं तथा दोनों के साहित्य की गतिविधियों के निरंतर संपर्क में रहते हैं. अपने व्यापक अनुभव और अध्ययन के द्वारा उन्होंने काव्य-संस्कार अर्जित किया है. अतः विश्वास किया जाना चाहिए कि उनके द्वारा किया गया अनुवाद प्रामाणिक तथा मूल काव्य की आत्मा की रक्षा करने वाला होगा. मुझे पूरा विश्वास है कि हिंदी जगत ‘नया साल’ का अत्यंत आत्मीयता और उदारता के साथ स्वागत करेगा. ... और हिंदी में भी ऐसे काव्य-आयोजनों की शृंखला चले; यह भी कामना है.
तेलंगाना के कवियों की सौंदर्य चेतना और सामाजिक पक्षधरता को समझने के लिए यह कविता  संकलन हिंदी पाठकों के समक्ष एक नया द्वार खोलेगा; इसमें संदेह नहीं.

विश्व मातृभाषा दिवस                                                  - ऋषभदेव शर्मा
21 फ़रवरी, 2017                                                 पूर्व प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष
                                                         उच्च शिक्षा और शोध संस्थान  
                                                 दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद          

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